रसायनशास्त्र

Q.24 : बफर विलयन क्या है? बफर विलयन के प्रकार व अनुप्रयोग लिखिए।

उत्तर -
बफर विलयन (Buffer Solution) - एक लिटर जल में एक बूंद 0.1N HCl अथवा 0.1NNaOH विलयन मिलाने पर क्रमशः हाइड्रोजन आयन सांद्रण अथवा हाइड्रॉक्सिल आयन सांद्रण बहुत अधिक बढ़ जाता है, परन्तु जब एक बूंद हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, दुर्बल अम्ल तथा उसके लवण के मिश्रित विलयन में मिलाते हैं तो हाइड्रोजन आयन सांद्रण पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार जब एक बूंद सोडियम हाइड्रॉक्साइड को दुर्बल क्षारक तथा उसके मिश्रित विलयन में मिलाते हैं तो हाइड्रॉक्सिल आयन सांद्रण पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है। ऐसे मिश्रित विलयन को प्रतिरोधक विलयन अथवा बफर विलयन कहते हैं। अतः "अम्ल या क्षार की अल्प मात्रा मिलाने से जिस विलयन के pH मान में कोई सार्थक परिवर्तन नहीं होता, उसे बफर विलयन कहते हैं।"

बफर विलयन के प्रकार (Types of Buffer Solution)- बफर विलयन मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं, जो कि निम्नलिखित हैं-

(i) अम्लीय बफर (Acidic Buffer)- दुर्बल अम्ल तथा उसके किसी प्रबल क्षारक के साथ बने हुए लवण का मिश्रण अम्लीय बफर कहलाता है। उदाहरण के लिए, CH3COOH + CH3COONa का मिश्रण एक अम्लीय बफर है।"
अम्लीय विलयन की क्रिया का स्पष्टीकरण (Explanation of Action of Acidic Buffer Solution)- ऐसीटिक अम्ल तथा सोडियम ऐसीटेट का विलयन अम्लीय बफर होता है। इस विलयन में ऐसीटिक अम्लं एक दुर्बल अम्ल है जिससे उसका आयनन कम होता है। जबकि सोडियम ऐसीटेट एक प्रबल विद्युत्-अपघट्य है जिसका आयनन अधिक होता है तथा विलयन में अधिक CH3COO के कारण ऐसीटिक अम्ल का आयनन सम आयन प्रभाव के कारण कम हो जाता है तथा विलयन में H+ आयन बहुत कम रहते हैं।

CH3CCOOH                 -->     CH3COO     +     H+

दुर्बल अम्ल                         कम आयनन     कम आयनन

CH3COONa                    -->     CH3COO     +     Na+

प्रबल विधुत-अपघट्य          अधिक आयनान     अधिक आयनन


यदि इस विलयन में किसी प्रबल अम्ल (जैसे HCl) की थोड़ी मात्रा मिला दी जाये तो- उससे प्राप्त H+ आयन विलयन में उपस्थित CH3COO आयनों द्वारा संयुक्त होकर CH3COOH अम्ल बनाते हैं। यह कम आयनित होने वाला अम्ल है तथा इस प्रकार मिलाये गये समस्त H+ आयन सोडियम ऐसीटेट के CH3COO आयनों से संयुक्त होते हैं तथा इनका प्रभाव विलयन पर नहीं पड़ता है तथा विलयन का pH अपरिवर्तित रहता है।
 

H+     +   CH3COO        -->        CH3COOH

                                        अल्प आयनित

यदि इसी बफर विलयन में थोड़ा सा क्षार मिला दिया जाये तो क्षार से प्राप्त OH आयन H+ से संयुक्त होकर H2O बनाते हैं, जो कम आयनित होने वाला पदार्थ है।

 

H+     +    OH        -->        H2O

                                        अल्प आयनित

विलयन के H+ का OH द्वारा संयोग हो जाने से CH3COOH का अधिक आयनन होता है, जिससे मिलाये गये समस्त OH आयन H+ द्वारा संयुक्त होकर H2O के रूप में बदल जाते हैं तथा क्षारक मिलाने से विलयन के pH में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

(ii) क्षारकीय बफर (Basic Buffer)- दुर्बल क्षारक तथा उसके किसी प्रबल अम्ल के साथ बने हुए लवणे का मिश्रण क्षारकीय बफर कहलाता है। उदाहरण के लिए, NH4OH + NH4CI का मिश्रण एक क्षारकीय बफर है।
क्षारकीय बफर विलयन की क्रिया का स्पष्टीकरण (Explanation of Action of Buffer Solution)- क्षारकीय विलयन में NH4OH तथा NH4CI का मिश्रण होता है। इस विलयन में NH4OH का आयनन कम होता है, क्योंकि NH4OH एक दुर्बल क्षार है। जबकि NHCI एक प्रबल विद्युत्-अपघट्य है इसलिए इसका आयनन अधिक होता है।
 

NH4Cl                                -->        NH4+                      +     Cl -

प्रबल विधुत-अपघट्य             अधिक आयनन     अधिक आयनन

NH4OH                                -->        NH4+                      +    OH

दुर्बल क्षार                     कम आयनन         कम आयनन

NH4CI के आयनन से अधिक NH4+ मिलने के कारण दुर्बल क्षार NH4OH का आयनन सम-आयन प्रभाव के कारण कम हो जाता है तथा विलयन में OH बहुत कम रह जाते हैं। इस विलयन में जब क्षार की थोड़ी सी मात्रा मिलायी जाती है, तो उससे प्राप्त OH आयन NH4CI से प्राप्त होने वाले NH4+ से मिलकर NH4OH बनाते हैं। यह एक दुर्बल क्षार है। तथा विलयन में अल्प आयनित ही होता है जिससे विलयन के OH आयनों की संख्या में कोई विशेष वृद्धि नहीं होती है और विलयन का pH मान अपरिवर्तित रहता है।

 

NH4+                      +    OH -         -->     NH4OH
                                                                अल्प आयनित

यदि विलयन में अम्ल की थोड़ी सी मात्रा मिलायी जाये तो उससे प्राप्त H+ आयन NH4OH के OH से संयुक्त होकर कम आयनित H2O बनाते हैं जिससे NH4OH का अधिक आयनन होता है तथा यह क्रम तब तक चलता है जब तक मिलाये गये समस्त H+, OH से संयुक्त होकर H2O के रूप में पृथक नहीं हो जाते हैं। मिलाये गये H+ आयन के संयुक्त हो जाने से विलयन का pH परिवर्तित नहीं होता है।

बफर विलयनों के अनुप्रयोग

बफर विलयनों के अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं –
(i) रासायनिक अभिक्रियाओं के वेग का अध्ययन करने में तथा pH मान को स्थिर रखने में
(ii) जीव विज्ञान प्रयोगशाला में संवर्धन (culture) तैयार करने में
(iii) शीरे के किण्वन द्वारा ऐल्कोहॉल के उत्पादन (pH5 से 6.5 तक बनाए रखने में) में
(iv) चमड़ा पकाने में तथा शर्करा, कागज आदि के निर्माण में उपयुक्त pH बनाए रखने में
(v) शारीरिक कार्यिकी की विभिन्न जीव रासायनिक क्रियाएँ निश्चित pH मान के माध्यम में सम्पन्न होती हैं।

हमारे रक्त का माध्यम कुछ क्षारीय (pH7.4) तथा आमाशय का माध्यम कुछ अम्लीय होता है जबकि हमारी आँतों का माध्यम कुछ क्षारीय होता है, यदि ऐसा नहीं हो तो हमारे शरीर में कई रोग उत्पन्न हो सकते हैं।


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